हादसा, Accident
ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog ; हादसा |
"तमन्नाएँ दिल में आसमान छूने की थीं, कोशिशें उनको जीने की थीं,
सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा , जहाँ चाहतें मेरी होंगी,
मगर रह गए ठगे से हाथ मल कर , क्योंकि उसकी मर्जी कुछ और ही थी।"
ज़िन्दगी के इस सफर में किस मोड़ पर क्या है ? , क्यों है ? ............... कोई नहीं जानता !!सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा , जहाँ चाहतें मेरी होंगी,
मगर रह गए ठगे से हाथ मल कर , क्योंकि उसकी मर्जी कुछ और ही थी।"
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ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog ; सदमा
बरसों पहले एक फिल्म देखी थी , नाम था " सदमा "। कमल हसन व् श्रीदेवी अभिनीत। फिल्म को देखने के बाद महसूस हुआ था कि, निर्माता -निर्देशक पब्लिक को इमोशनल करने के लिए कुछ भी कहानी गढ़ देते हैं , ऐसा वास्तविक-ज़िन्दगी [Real -Life ] में कहाँ होता है। फिल्म की संक्षेप कहानी यह है कि, " एक एक्सीडेंट में नायिका अपने परिवार से बिछुड़ जाती है, याददाश्त खो देती है, और बचपन में चली जाती है । ऐसे में नायक उसे अपने घर ले आता है। उसकी बहुत देखभाल करता है , नायक को उससे प्यार हो जाता है। कुछ समय बाद नायिका की याददाश्त वापस आ जाती है और वो नायक को पहचानने से इंकार कर देती है "। नायक सदमे से पागल हो जाता है। अतः हम ग़मगीन होकर , इमोशनल पिक्चर देख कर घर वापस आ गए।
अनेकों कहानियां जो गढ़ी जाती हैं, वो सच भी हो जाती हैं। ज़िन्दगी आराम से चलती रहती है। लेकिन अचानक ज़िन्दगी में भूचाल आ जाता है। कुछ ऐसा घट जाता है, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की होती है। इंसान का सब कुछ बिखर जाता है। वो हादसा उसे ऐसे ज़ख्म दे जाता है जो बरसों नहीं सूखते। ऐसा ही कुछ घटा अरविंद के परिवार के साथ।
ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog ; घटना
अरविन्द झुंझुनू [राजस्थान ] का रहने वाला था। पिताजी एक सरकारी अधिकारी थे। घर में माँ के अलावा एक छोटी बहन भी थी। चार साल हो गए थे अरविन्द की शादी को। उसके दो बेटे भी थे। मेहनत करके तरक्की करना उसका ध्येय था। इसी प्रयास में उसकी नौकरी बैंक में अधिकारी के पद पर लग गई और पोस्टिंग के लिए जालंधर [पंजाब ] जाना पड़ा। 2 वर्ष पश्चात वो अपनी पत्नि व् बेटों को भी जालंधर ले आया। बेटों को स्कूल में भर्ती करवा दिया। परिवार खुशहाल था। बैंक का स्टाफ भी अच्छा था। एक -दूसरे के घर आना -जाना आम बात थी। छुट्टी में कहीं घूमने जाना , सिनेमा देखना, वो सब जो आम इंसान करता है , चल रहा था।
एक दिन जब अरविन्द बैंक में था , तभी अचानक बाहर लोगों का हो -हल्ला होने लगा। इससे पहले की कुछ समझ आये; अचानक जोर का धमाका हुआ. एक फाइटर-प्लेन रहवासी इलाके में नीचे आने लगा। एक मकान की छत से टकराया और दो टुकड़े हो गया। उसमे से एक टुकड़ा इतनी जोर से ज़मीन पर गिरा कि उछल कर बैंक के दरवाजे को तोड़ता हुआ अंदर घुस गया और बैंक के स्टाफ और ग्राहकों को अपनी चपेट में ले लिया। उस चपेट में अरविन्द भी शामिल था।
ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog / Crashed- Plane |
बैंक के बाहर भीड़ जमा हो गई। देखने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। इस तरह के हादसों में सहायता कम और शोर ज्यादा होने लगता है। दिमाग़ शून्य हो जाता है। बैंक में आग फ़ैल रही थी , लोगों ने बाल्टी से पानी डालना शुरू किया। स्टाफ को बाहर निकालने की कोशिश शुरू की गई। लेकिन फाइटर -प्लेन के टुकड़े में इतनी गर्मी थी कि उसके आस -पास फटकने की भी किसी में हिम्मत नहीं हो रही थी। खबर भी आग की तरह TV पर फ़ैल गई। फोन की घंटियां बजने लगीं।
लगभग आधा घंटे बाद फायर -ब्रिगेड की गाडी आयी , उसने आग बुझाना शुरू किया। तब तक पुलिस भी आ गई थी। काफी मशक्कत के बाद, [लगभग 2 घंटे ] बैंक के ग्राहक व् स्टाफ को बाहर निकाला जा सका। शरीर खून से लथपथ थे , उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इस दौरान 3 इंसानों की जान चली गई। अरविन्द की साँसे चल रही थीं , परन्तु उसे होश नहीं था। अरविन्द के माता -पिता को जो भी वाहन उपलब्ध हुआ उससे जालंधर की तरफ रवाना हो गए। बहु -कुसुम को ढांढस बंधाया की वो पहुँच रहे हैं। अरुण की पत्नि कुसुम पड़ोसियों की सहायता से अस्पताल पहुँच चुकी थी। अफरा -तफरी का माहौल और बदहवासी का आलम ये था कि अस्पताल मंडी में तब्दील हो चुका था। पीड़ित के रिश्तेदार अपनों की खैर -खबर जानने के लिए बेताब थे।
हादसा |
शाम तक अरविन्द के माता -पिता भी भटकते हुए उसके पास पहुँच गए। मालूम पड़ा कि अरविन्द बेहोश है , इलाज जारी है। डॉक्टर ने बताया उसके सिर , छाती में गहरे ज़ख्म हैं। जहाज के टूटे हुए टुकड़े घुस गए थे , उन्हें निकाला जा रहा है , खून बहुत बह चुका है। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं।
कुसुम निढाल होती जा रही थी। "अगर उन्हें कुछ हो गया तो" !! ............ इस विचार से ही वो काँप उठती थी । बुरी-परिस्थिति में अच्छे विचार कभी नहीं आते। इसी बीच..... उसके मम्मी-पापा भी आ गए। उनसे लिपट कर वो दहाड़ मारकर रो पड़ी, उसकी माँ का आँचल पूरा भीग चुका था । उन्होंने उसे शांत करवाया और भरोसा दिया कि, "सब ठीक हो जाएगा, भगवान् पर भरोसा रख "। शायद............. बुजुर्ग ही ऐसे समय में सहारा होते हैं।
रात होने लगी थी , घर पर बच्चे पहुँच चुके थे। अपनी तो नहीं , पर हाँ बच्चों की भूख की चिंता सबको सताने लगी । अरविन्द के माता -पिता घर पहुंच गए , बच्चों को संभाला। खाना बनाया। अरविन्द के पिताजी कुछ खाना लेकर अस्पताल के लिए निकल गए। रात भर वे सभी अरविन्द की देख-रेख, अच्छी -खबर सुनने के लिए बेताब रहे। सुबह डॉक्टर्स की पूरी टीम आ गयी थी। प्रदेश के प्रभारी-मंत्री भी उपस्तिथ थे। इस निरिक्षण में पूरा अस्पताल अलर्ट हो गया था । परिचित अपने मरीज से नहीं मिल सकते थे । अरविन्द के परिवार वाले व्याकुल थे, उसकी सेहत को लेकर ।
ज़िन्दगी के अनुभव पर Blog ; अंजाम
जब मंत्री व् डॉक्टर्स का राउंड खत्म हुआ , तब बताया गया की अरविन्द की हालत सीरियस है , अगले 24 घंटे बेहद नाजुक होंगे, उसके लिए। रोंगटे खड़े हो गए परिवार वालों के। दोपहर तक तो सब ठीक सा लग रहा था। लेकिन कुछ ही मिनटों बाद अरविन्द की साँसे तेज होने लगी। कुसुम ने नर्स को आवाज लगाईं , नर्स ने फ़ौरन ऑक्सीजन लगा दी। डॉक्टर को इमरजेंसी कॉल किया गया। लेकिन जब तक डॉक्टर आता , अरविन्द दुनिया छोड़ चुका था। मातम छा गया सभी के चेहरे पर।
अगले दिन अरविन्द के अन्य रिश्तेदारों के आने के बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। कुसुम घर में बने पूजा -घर में रखे भगवान को देख रही थी। शायद, पूछ रही थी........... "ऐसा क्यों किया उसके साथ "?
इस हादसे ने माँ-पिता से उसका बेटा , पत्नि से उसका साथी , बहन से भाई , बच्चों से उनका पिता हमेशा के लिए छीन लिया। ऐसे हादसे कभी बताकर नहीं होते। क्या ये हादसा कुदरत का कहर था ? या फिर कोई साजिश ? या मानवीय-भूल ? कहना और समझना बेहद मुश्किल है।
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पेड़ का ज़मीन से अलग हो जाना; हादसा ही होता है। जो उस जगह को जहाँ पेड़ था , खोखला कर देता है।
हादसे ज़िंदगी में कभी भी हो सकते हैं। क्या हम उनके लिए तैयार रहते हैं ???
रहना चाहिए , आपदा -प्रबंधन [ Disaster -Management ] इसीलिए किये जाते हैं।
किसी अपने प्रिय का अचानक चला जाना , बच्चों से उम्मीद खोना , बच्चों द्वारा माँ -बाप को त्याग देना, छोटी उम्र में ही संतान -शोक , माँ या पिता का साया छिन जाना , किसी से इन्तेहाँ मोहब्बत में धोखा खाना , किसी एक्सीडेंट में अपनों को या अपना सब कुछ गवां देना , आदि हादसे अचानक होते हैं। जो हम सभी को कहीं न कहीं देखने को मिल जाते हैं। हमें उनके लिए तैयार रहना चाहिए , हौसले से सामना करना चाहिए।
भूकंप-हादसा |
अनेकों फ़िल्में इसी सोच को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। और उनके समाधान ढूंढ़ने का प्रयास भी होता है।
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